Sunday, August 4, 2013

सखी वे मुझसे कह कर जाते


राजकुमार सिद्धार्थ रात को पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोते में छोड़कर गौतम बुद्ध बनने के सफ़र में निकल पड़े. यशोधरा उन्हें अलविदा बोलना चाहती थीं. इस नए सफ़र में खुद सजाकर भेजना चाहती थीं. उन्हें शुभकामनाएं देना चाहती थीं. मगर सुबह जब पत्नी यशोधरा को पता चलता है कि सिद्धार्थ उन्हें इस तरह बिना बताये छोड़कर चले गये हैं तब उनके मन पर क्या बितती है, वो मैथिलीशरण गुप्त जी ने इस कविता में बयान की है: 




सखी वे मुझसे कह कर जाते
कहते तो क्या मुझको अपनी पग बाधा ही पाते?

मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्या उसीको माना
जो वे मन में लाते |
सखी वे मुझसे कह कर जाते……

स्वयं सुसज्जित करके क्षण में
प्रियतम को प्राणों के पण में,
हम ही भेज देती हैं रण में
क्षात्र धर्म के नाते |
सखी वे मुझसे कह कर जाते……

हुआ न यह भी भाग्य अभागा
किस पर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते |
सखी वे मुझसे कह कर जाते……

नयन इन्हें हैं निष्ठुर कहते
पर इनसे जो आंसू बहते
सदय ह्रदय वे कैसे सहते
गए तरस ही खाते |
सखी वे मुझसे कह कर जाते……

जाएँ, सिद्धि पायें वे सुख से
दुखी न हों इस जन के दुःख से
उप्लाम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वो भाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते……

गए, लौट भी वे आवेंगे
कुछ अपूर्व अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे
पर क्या गाते गाते?
सखी वे मुझसे कह कर जाते……

- राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त

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