जंग का वीर
विशेषज्ञ को कोई नहीं पूछता. ना ही उन्हें जो अलग खड़े नुस्ख निकालते रहते हैं कि अगर वो सिपाही ऐसे नहीं वैसे करता तो नहीं लड़खड़ाता, फलां काम को और अच्छे से कर सकता था. उन्हें कोई नहीं पूछता. सलाम तो उसे है जो रणभूमि में खड़ा है. धूल में, पसीने में, खून में सना हुआ है. जो दृढ़ होकर आगे बढ़ने की ललक में है. वो गिरता है, बार-बार मंजिल से पीछे रह जाता है क्योंकि हर कोशिश में चुक और गलतियाँ होती हैं. मगर वो फिर उठता है, फिर आगे बढ़ने के लिए लड़ता है. वो उत्साह से भरा हुआ, एकाग्रता से लैस एक अच्छे मकसद के लिए लड़ रहा है. सुखद अंत रहा तो उसे प्यारी जीत मिलेगी या उलटे समय में हार, संघर्षमयी हार. मगर वो फिर भी उन विश्लेषकों की भीड़ से अलग रहेगा जो नाहीं हारे हैं नाहीं जीत का स्वाद चखे हैं.
"The Man in the Arena"
- Theodore Roosevelt ('Citizenship in a Republic' is the title of the speech given at the Sorbonne in Paris, France on April 23, 1910).
अमरीका के 26वें राष्ट्रपति थिओडोर रूज़वेल्ट (Theodore Roosevelt - 27 अक्टूबर'1858 – 6 जनवरी'1919) 42 वर्ष के उम्र में ही राष्ट्रपति (1901-1909) बन गये थे. अमरीकी इतिहास में सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति. सलाम है उनको. एक बात है ये फिरंग सारी जानकारियों को बड़े अच्छे ढंग से, पुरे शोध के साथ प्रस्तुत करते हैं. हममें ये कमी है. पुस्तक है भी तो कहाँ पता नहीं. कई भारतीय योद्धाओं के विषय में बड़ी कम जानकारी एक जगह मिलती है. हमें अभी काफी शोध और काम करने की जरुरत है.
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