‘आग की भीख’ दिनकर द्वारा सन 1943 में लिखी गयी कविता है| यह सामधेनी (कविता संग्रह) की
एक कविता है. सामधेनी संग्रह 1947 में प्रकाशित हुआ था| आजादी के पहले ऐसी कविता
का देश में क्या प्रभाव पड़ा होगा, ये सोचने वाली बात है| सन 1939 में द्वितीय
विश्व युद्ध छिड़ गया था| अंग्रेजों के आधीन होने के कारण भारत भी उनके टीम का
हिस्सा बन गया था| इसके विरोध प्रदर्शन में गांधीजी ने अगस्त 1942 में ‘भारत छोड़ो
आन्दोलन’ (Quit India Movement) शुरू किया| अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें पकड़कर जेल में
डाल दिया| प्रतिउत्तर में देशव्यापी प्रदर्शन शुरू हो गया| आक्रोशित जनता तोड़-फोड़
करने लगी| ट्रेनों की पटरियाँ उखाड़ दी, वगैरह वगैरह| अंग्रेजों ने गाँधी को इसका
जिम्मेदार ठहराया| खैर इस तरह के विरोध प्रदर्शन उसके बाद लगातार चलते ही रहे| इन
सबके बीच 1943 में ‘दिनकर’ की ये कविता आई:
आग की भीख
- दिनकर
1. धुँधली हुई
दिशाएँ, छाने लगा कुहासा,
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा। कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है, मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है? दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे, बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे। प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ। चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ। 3. आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है, बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है, अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है, है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है! निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है, निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है। पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ। जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ। 5. आँसूभरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे, मेरे शमशान में आ श्रंगी जरा बजा दे। फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे, हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे। आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे, अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे। विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ। बेचैन ज़िन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ। |
2.
बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है? मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा? यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा? आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा, भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा। तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ। ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ।
4.
मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है,
अरमानआरज़ू की लाशें निकल रही हैं। भीगीखुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं, सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं, इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे, पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे। उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ। विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ। 6. ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे, जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे। गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे, इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे। हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे, अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे। प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ। तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ। |
Meanings:
ReplyDeleteसंदीप्ति – प्रकाश, उजाला, lumniscence
बेकली – बेचैनी, व्याकुलता, restlessness
तरी – नमी, तरावट, गिला, स्थिर पानी जैसा
अदृष्ट - भाग्य, संपत्ति, तक़दीर, fortune
संधान करना – खोजना, ढूँढना, search
ध्रुव – निश्चित, दृढ, निश्चय , असंदिग्ध, decided
पुंज – गुच्छा, ढेर, bunch
केसरी – सिंह, शेर
kesari was Hanumaan's father name because he could kill lions
ग्रीवा – गर्दन, गला, neck
अग्निस्फुलिंग रज ka ishaara shaayad desh ke purushaarth ki taraf hai (रज=मिट्टी का अग्निस्फुलित + लिंग)... in essence, desh ke youth ke josh ki or ishara hai...
रज -मिट्टी, धूलि, dust
श्रंगी – बजानेवाला सिंगी बाजा,
सिंगी - सींग का बना हुआ बाजा जो मुँह से फूँककर बजाया जाता है, तुरही
आमर्ष – क्रोध, असहनशीलता
प्रभंजन - १. अच्छी या पूरी तरह से तोड़ने-फोड़ने और नष्ट करने की क्रिया या भाव। २. रोकना या निवारण करना। ३. हराना। पराजित करना।
अनलविशिख – अनल + विशिख = प्रचंड आग
thnx
Deleteअनलमयी ka meaning kya hota h sir
ReplyDeleteअनल का मतलब होता है आग और अनिल मई का मतलब होता है आग से भरा हुआ
DeleteThank you..
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