आज कोमल से डबल रॉड (दो डंडी वाले) गणित रैक के
हिंदी अनुवाद के ऊपर बात हो रही थी| उन्होंने पूछा कि मैंने ‘teacher’ को हिंदी में
‘टीचर’ क्यूँ लिखा है, ‘शिक्षिका’ क्यूँ नहीं? मैंने कहा, अभी कुछ समय पहले
प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाई साहब’ पढ़ रहा था| उसमें उन्होंने कई सारे आम बोल चल
वाले अंग्रेजी के शब्दों को ऐसे ही हिंदी में लिख रखा है| अतैव मैंने भी उसी तर्ज
पर टीचर लिखा है| वो थोड़े संकोच में पड़ गयीं| बोलीं, “टीम
में पूछूंगी”| मैंने कहा
ठीक है|
फिर बाद में अपनी बात पक्की करने के लिए मैंने
वो कहानी दुबारा पढ़ी| सच में, प्रेमचंद के लिए हिंदी आम लोगों की भाषा थी| इतनी
सहज, सरल की कोई भी समझ ले| वही मैंने दिनकर की रश्मिरथी भी पढ़ी है| कितने सारे
कठिन शब्द मिले जो हवा नहीं लगे| बस वाक्य के आधार पर अर्थ निकलना पड़ा| कौटिल्य अर्थशास्त्र
में भी ऐसी हिंदी है कि समझने में पसीने छुट जाते हैं| अर्थशास्त्र विचारों में
खुद ही अथाह है, उसपर क्लिष्ट हिंदी लेखनी इसे और कठिन बनाये देती है|
भाषा सरल होनी चाहिए| हम सामने
वाले तक अपने विचार पहुंचा सकें, ऐसी होनी चाहिए| न की गोया ऐसी लिख रहे हैं कि
सामने वाला लोहे के चने ही चबाता रहे| हाँ ये भी जरुरी है कि आसान करने के चक्कर
में अर्थ न बदले| अगर इन दोनों चीजों की तर्ज पर लेखनी खरी उतर रही है तो काहे की
हाय तौबा मचाना!
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