Wednesday, July 17, 2013

नयी पीढ़ी के दिनकर, दुष्यंत कुमार, फैज़ अहमद फैज़ कहाँ हैं?


ऐसे ही ग़ालिब (एक मित्र का पुकारू नाम) से कल सारण में midday meal के दौरान हादसे पर बात छिड़ी, तो हम लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह घटना कोई एक अकेली घटना नहीं है| आये दिन  हमारे समाज में लापरवाही के कारण इस तरह के हादसे हो रहे हैं| तो यह लापरवाही क्यों? इसका कारण हमारे अन्दर राष्ट्र-हित, राष्ट्र-उन्नति के भाव का आभाव है| हर चीज में हम बस अपने बारे में ही सोचते हैं और हर खामी के लिए सरकार को दोष देते हैं| ये नहीं समझते की कि ये सुधार हमारा भी काम है| बच्चों के लिए खाना अच्छे से बने इसके लिए कोई supervisor की जरुरत नहीं होनी चाहिए| रसोइये में खुद यह भाव होना चाहिए, और हर दिन होना चाहिए| 

तर्क में मैंने अपना विचार रखा कि इसके मूल में हमारे समाज में साहित्य, कविताओं और उनसे जुड़े लोगों का उचित मान न करना है| ग़ालिब ने टीचरों को महत्ता न देना इसका कारण बोला| हम सिर्फ डॉक्टर-इंजीनियर बनाने में लगे हुए है, लेखक-कवियों पर हमारा ध्यान ही नहीं है| डॉक्टर-इंजीनियर बेशक समाज के निर्माण के लिए आवश्यक हैं पर कवि-लेखक समाज में जान डालते हैं, जोश जागते हैं| टीचर राष्ट्र सम्बन्धी मूल्यों को जन्म देती है| साहित्य इसे सींचता है| इन्ही के बलपर एक नागरिक भविष्य में सजग नागरिक बनता है| हमारे विकास के मॉडल में इसका ही आभाव है| इस मॉडल में ढाँचा तो है मगर आत्मा नहीं है! दिनकर, फैज़ अहमद फैज़, दुष्यंत कुमार की रचनाओं को पढ़कर जोश आ जाता है| हमारी नयी पीढ़ी के दिनकर, दुष्यंत कुमार, फैज़ अहमद फैज़ कहाँ हैं?

PS:
1. Aag Jalni Chahiye by Dushyant Kumar
2. Hum Dekhenge by Faiz Ahmed FaizAudio on Youtube by Iqbal Bano

1 comment:

  1. हम कहते हैं ये तलाश बेमानी है। आज के हालत में हमे फैज़ नहीं चाहिए लडाई बहार नहीं है। बात अराजकता मिटाने की नहीं, खुद को बेहतर बनाने की है। देश को एक और कर्त्तव्यमूढ़ आलोचक नहीं चाहिए।
    जरुरत है ऐसे कवी की को हौसला दे, जो कहे के ये धरती तुन्हारी है इसके पालनहार भी तुम्ही हो फिर किसी और के भरोसे कैसे बैठ सकते हो।
    कोई ऐसा चाहिए जो "अहम् ब्रह्मास्मि" का भाव हर किसी में भर दे। जो कहे के हे मनुज तुम्ही देव हो, तुम्ही संसार का उद्धार करोगे, तुम्हारे ह्रदय में भाव और करों में शक्ति है।

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