ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा लायी जा रही स्किल डेवलपमेंट
प्रोग्राम “रोशनी”, सरकार की आतंरिक गंभीर घाव पर पाउडर लगाने जैसा है| इसमें
सरकार ने महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की बात भी कही है| इस प्रशिक्षण का जिम्मा इस
क्षेत्र में कार्यान्वित कुछ कंपनियों को दिया गया है| प्रशिक्षित युवाओं को
रोजगार दिलाने का कार्य भी उनकी कंपनी का है| पश्चिमी सिंहभूम व सुकमा जिले के सफल
प्रयोग के बाद रौशनी को अति नक्सल प्रभावित 24 जिलों में शुरू करने की बात है| सुकमा
जिले के 216 में से लगभग 153 लोगों को बंगलोर, चेन्नई, हैदराबाद जैसी जगहों पर नौकरियां
मिलीं हैं|
रोशनी योजना के अंतर्गत सरकार अगले 3 वर्ष में 50 हज़ार
युवक-युवतियों के प्रशिक्षण की बात कह रही है| नक्सलवाद से निपटने की दिशा में यह कोई
ठोस कदम नहीं है| एक तरीके से सरकार की थोपी हुई योजना पर सरकार आदिवासिओं से उनकी
भागेदारी सुनिश्चित करने को कह रही है| कल अगर उन प्रशिक्षित लोगों को रोजगार नहीं
मिला तो सरकार को पल्ला छुड़ाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा| भई उन्होंने तो 100
करोड़ रुपये खर्च कर अपनी नैतिक जिम्मेदारी पूरी कर ली अब नौकरी नहीं मिली तो इसमें
सरकार का क्या दोष?
भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र होने का ढिंढोरा पिटता
फिरता है| पर ये शोरगुल सिर्फ बोलने भर क्यों रहता है? सरकार और नेता इसे लागु
क्यूँ नहीं करते, हम(जनता) उनसे इसकी मांग क्यूँ नहीं करते? नेता जनता के बीच से
चुने जाते हैं| पर चुने जाने के बाद वो जन-मत के महत्त्व को नजरअंदाज क्यूँ कर
देते हैं? जनता के लिए काम जनता की सहमती, समर्थन से होगा| बंद कमरे में योजना बनाकर
उनपर थोपने से नहीं|
अर्थशास्त्र में पढाया जाता है कि समुदाय के लिए बनायीं जा रही
योजना में पार्टिसिपेटरी रूरल अप्रैसल(Participatory Rural
Appraisal) नामक एक चरण होता है, जिसमे योजना
पर समुदाय की राय ली जाती है और उस आधार पर योजना में संशोधन किया जाता है| यह
संशोधन 0% से लेकर 100% तक हो सकता है| किसी भी योजना की सफलता या विफलता में इस
प्रक्रिया का एहम महत्त्व है|
जनतंत्र का अर्थ भी यही है| जिस समुदाय के हित के लिए काम
हो रहा हो, योजनायें बनायीं जा रही हो, उन्हें उसमें विश्वास हो, और वे अपने
उत्थान के पहल में भागीदार बनें| मगर वर्त्तमान चलन है, पहले योजना बनाओ, फिर
समुदाय पर उसे थोप दो| अगर वे साथ दें तो देशभर में अपनी कुशलता का ढिंढोरा पीटो और
अगर वो नहीं स्वीकार करें तो लाठी के जोर पर उसे मनवाओ, उनके प्रदर्शन को कुचल दो|
हमारे देश में जनतंत्र
चुनाव के प्रचार, लेखनी और साक्षात्कारों में सिमट कर रह गया है| इसी कारण
दिन-प्रतिदिन ज्यादातर योजनायें विफल हो रही हैं| विकासशील से विकसित राष्ट्र बनने
का सपना हमसे दूर होता जा रहा है|